Thursday, January 22, 2009

जिन्दगी...

कभी लगता है ,जिन्दगी भँवर है,
जिसमे हम अनचाहे खिचे चले जा रहे हैं...
कभी लगता है, ये कँवर है,
जिसे रखना पाप है, इसलिए ढोए चले जा रहे हैं...
जिन्दगी के फूल कभी-कभी खुशबू भी फैलाते हैं,
पर ये फूल जल्दी ही मुरझा जाते हैं,
और सड़कर फ़िर लंबे समय तक अपनी बदबू छोड़ जाते है

जिन्दगी देनेवाले का काम भी बड़ा अजीब होता है,
इतने लोगों के लिए अलग-अलग राह बनाना,
कुछ लोगों को मिलाना,
और कुछ को मिलाकर अलग करवाना
कुछ पर अपने कृपा के मोंती बरसाना,
और कुछ की शिकायतें अनसुनी कर जाना

कुछ लोग भी अजीब होते हैं,
रिश्तें मर जाते हैं फ़िर भी उन्हें ढ़ोते हैं,
जब एहसास होता है तो बस रोतें हैं
समझदार लोंग ऐसे समय कहाँ खोते हैं,
पर कुछ लोंग इतने समझदार नही होते हैं,
ख़ुद गलतियाँ करते है और शिकायत ओरों से होते हैं,
जिन्दा तो रहते है पर जिन्दगी का मतलब खोते हैं

7 comments:

  1. अरे वाह........बहुत उम्दा ख्यालातों से भरी रचना...........बधाई............!!

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  2. संगीताजी, किशोरजी, राजीवजी और अशोकजी...आप सबका बहुत-बहुत शुक्रिया....आप सब ख़ुद इतना अच्छा लिखते है..और आपने मेरी लेखनी को पढ़ा और सहारा..इससे बड़ी बात मेरे लिए क्या होगी..कोशिश करुँगी भविष्य मे, मै भी कुछ सार्थक लिख सकु..

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  3. shabdo ko behad achchhi tarke se aakar diya hai,bhawnao me guthkar,
    mere vichar se rishto ka ehsas agar jinda rahe to achchha hai.

    ------------------------------------"VISHAL"

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  4. wahh wahhh aapki apni baat or chitta dono sundar hai....swagat hai....mere blog par bhi padharen

    Jai Ho Magalmay Ho

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  5. sundar soochana dene ke liye badhai ho.blog ki is duniya me apka swagat hai

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  6. रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति

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