माँ, तुझमे ही मेरी सारी दुनिया समायी,,,
बैचैन रातों मे, तेरी गोद मे ही नींद आई,,
अपने सारे सपने बेचकर,,
तू हमारे लिए बेसकिमती सपने ले आई,,
हमारी हर एक हसरत के लिए,
अपनी सारी चाहत भुलाई,,
अब मुम्किन तो नही की,,
तेरे सपने, चाहत, उम्र
कुछ भी लौटा दू,,
बस कोशिश करती हूँ,,
जो भी मेरे हाथो मे है,,
तेरी राहों मे बिछा दूँ...
"मै जो भीड़ में खो गयी हूँ... एहसास जो कभी खोते नही .. मै जो थक कर सो गयी हूँ, एहसास जो कभी सोते नही.." "मै जो आज बेजुबान हो गयी हूँ, एहसास जो कभी चुप होते नही.. मै जो अब पत्थर हो गयी हूँ एहसास जो कभी सख्त होते नही.."
Friday, October 23, 2009
माँ..
Friday, February 13, 2009
एक ख्वाब था...
एक ख्वाब था जो
गलती से मेरे पलकों पे आ गया
मैंने अनजाने, अपना समझकर
उसे दिल मे बैठा लिया
उसको अपना बनाने की धुन मे
सारे ख्वाबो से रिश्ता बिगार लिया
पर परवाह किसको थी,
जब अपना जहाँ
उस एक ख्वाब से ही
मुकम्मल-सा लगने लगा ...
रात आती रही, जाती रही
ख्वाब वैसे ही लेटा रहा
और मै उसके बगल मे बैठी रही
वो मुझे चाँद से
मिलवाने ले जाता
और आते वक्त
चाँद के बाग़ से
कुछ सितारे तोड़कर
मेरी जुल्फों मे लगा देता
मै चुपके से उसे
कम्बल ओढा देती
धुप उसकी आंखों मे न चुभे
इसलिए सारे परदे गिरा देती...
एक रोज सोयी तो,
ख्वाब कहीं भी न दिखा
पानी, धरती, आसमां मे ढूंढा
हवा, खुशबू, चाँद से पूछा
पर कहीं उसका निशां न मिला
मै भी पगली
कहाँ ख्वाब से दिल लगा बैठी
जब होश आया तो देखा
नींद मे ही सबकुछ गवा बैठी ...
एक अरसा हुआ, उसे गये हुए
पर अब भी एक तारा है जो
मेरी जुल्फों मे फसा रह गया है
एक आश है जो
निराशा की भीड़ मे
मेरे दामन से चिपकी पड़ी है
एक बार वो ख्वाब
दो पल को ही दिख जाए
उसके जाने का सबब नही पुछुगी
न ही उससे पाने-खोने का कोई हिसाब मागुंगी
बस इस तारे और आश को लौटाकर
कुछ पल चैन से सोने की तमन्ना है...
गलती से मेरे पलकों पे आ गया
मैंने अनजाने, अपना समझकर
उसे दिल मे बैठा लिया
उसको अपना बनाने की धुन मे
सारे ख्वाबो से रिश्ता बिगार लिया
पर परवाह किसको थी,
जब अपना जहाँ
उस एक ख्वाब से ही
मुकम्मल-सा लगने लगा ...
रात आती रही, जाती रही
ख्वाब वैसे ही लेटा रहा
और मै उसके बगल मे बैठी रही
वो मुझे चाँद से
मिलवाने ले जाता
और आते वक्त
चाँद के बाग़ से
कुछ सितारे तोड़कर
मेरी जुल्फों मे लगा देता
मै चुपके से उसे
कम्बल ओढा देती
धुप उसकी आंखों मे न चुभे
इसलिए सारे परदे गिरा देती...
एक रोज सोयी तो,
ख्वाब कहीं भी न दिखा
पानी, धरती, आसमां मे ढूंढा
हवा, खुशबू, चाँद से पूछा
पर कहीं उसका निशां न मिला
मै भी पगली
कहाँ ख्वाब से दिल लगा बैठी
जब होश आया तो देखा
नींद मे ही सबकुछ गवा बैठी ...
एक अरसा हुआ, उसे गये हुए
पर अब भी एक तारा है जो
मेरी जुल्फों मे फसा रह गया है
एक आश है जो
निराशा की भीड़ मे
मेरे दामन से चिपकी पड़ी है
एक बार वो ख्वाब
दो पल को ही दिख जाए
उसके जाने का सबब नही पुछुगी
न ही उससे पाने-खोने का कोई हिसाब मागुंगी
बस इस तारे और आश को लौटाकर
कुछ पल चैन से सोने की तमन्ना है...
Saturday, February 7, 2009
वक्त...
वक्त चलता रहता है,
बदलता रहता है॥
वक्त के साथ लोग भी चलना सिख जाते है,
बदलना सिख जाते है॥
मै भी शायद चल रही हूँ,
या शायद रुक गई हूँ॥
बदलने की कोशिश मे शायद थक गई हूँ॥
वक्त उन्ही का अच्छा साथ देता है,
जो वक्त के साथ चलते है॥
पर मै तो पीछे रह गई हूँ,शायद बहुत पीछे॥
मुझे भी आगे बढ़ना है ओरों की तरह,
मुझे भी बदलना है ओरों की तरह॥
दिल की तो आदत है,
कहीं लग जाता है तो बस लग जाता है,
पर अब वक्त नही इसके सुनने-सुनाने की॥
काश ऐसा कोई रास्ता होता,
जहाँ दिल को भी खुशी-खुशी ले जा पाती,
पर रास्ते तो दिमाग के लिए ही बनते है,
और दिमागवाले ही उसपर ठीक से चलते है॥
मुझे भी अब तेज़ी से बढ़ना होगा,
चाहे इसके लिए अपनी ही भावनाओ से लड़ना होगा॥
कोशिश है ,वक्त के पास पहुँच पाँऊ,
कोशिश नही मझे ऐसा करना ही होगा॥
क्यूंकि यही सही है, और सिर्फ़ यही सही होगा॥
बदलता रहता है॥
वक्त के साथ लोग भी चलना सिख जाते है,
बदलना सिख जाते है॥
मै भी शायद चल रही हूँ,
या शायद रुक गई हूँ॥
बदलने की कोशिश मे शायद थक गई हूँ॥
वक्त उन्ही का अच्छा साथ देता है,
जो वक्त के साथ चलते है॥
पर मै तो पीछे रह गई हूँ,शायद बहुत पीछे॥
मुझे भी आगे बढ़ना है ओरों की तरह,
मुझे भी बदलना है ओरों की तरह॥
दिल की तो आदत है,
कहीं लग जाता है तो बस लग जाता है,
पर अब वक्त नही इसके सुनने-सुनाने की॥
काश ऐसा कोई रास्ता होता,
जहाँ दिल को भी खुशी-खुशी ले जा पाती,
पर रास्ते तो दिमाग के लिए ही बनते है,
और दिमागवाले ही उसपर ठीक से चलते है॥
मुझे भी अब तेज़ी से बढ़ना होगा,
चाहे इसके लिए अपनी ही भावनाओ से लड़ना होगा॥
कोशिश है ,वक्त के पास पहुँच पाँऊ,
कोशिश नही मझे ऐसा करना ही होगा॥
क्यूंकि यही सही है, और सिर्फ़ यही सही होगा॥
Monday, February 2, 2009
ऐसे बाप की जरुरत नही....
कहानी जैसा आजतक कुछ लिखा नही, इसलिए उम्मीद कम है की विषय के साथ पूर्ण न्याय कर पाऊँगी॥ वैसे आज भी, पहली बार जो लिखने का प्रयास कर रही हूँ वो कोई कहानी नही बस मेरा आँखों देखा यथार्थ है..कोशिश है जो मैंने देखा है आपको भी उसी रूप मे दिखा सकू॥
हमारा घर पहाडी इलाके मे पड़ता है, सो रास्तों मे काफी उतार-चढाव है. पुल पार करके एक चढाव पे सामान लेकर चढ़ने मे पुरुषों की भी हालत पस्त हो जाती है..उसी चढाव पे हर दिन काफी भारी-भरकम सामान साईकिल पे लादे १४ वर्ष की दुबली-पतली सावली सी स्वेता को अक्सर सबों ने देखा होगा॥ कभी उसकी माँ उसे पीछे से धक्का देतीं हुई नज़र आती है कभी उसकी बहने॥
स्वेता अपनी छः बहनों मे तीसरे नम्बर पे है॥ अर्जुन चचा(स्वेता के पिता) की मृत्यु हुए पॉँच साल से ज्यादा हो गए होंगे और स्वेता को करीब से जानते हुए मुझे पॉँच साल से कम ही हुए होंगे ॥ अर्जुन चचा की मौत किसी दुर्घटना मे हो गई थी ॥ अपने मरने के बाद जायदाद के नाम पर अपनी बीबी और छः बच्चियों के लिए,एक छोटी-सी पान-गुमटी और किराये का एक कमरे वाला मकान छोड़ गए॥ उनकी मौत के बाद स्वेता की माँ के घरवालों के आलावा कोई सगा-सम्बन्धी नही था जो उनके लिए कुछ करता॥ उन्ही की मदद से कुछ साल पहले स्वेता की माँ ने बड़ी बेटी की शादी अपने से अच्छे घर मे करवा दी ॥ स्वीटी जो की दुसरे नम्बर पे है,उसे घर से बाहर निकलते कम ही देखा है॥ और स्वेता से छोटी बहनों को ज्यादातर खेलते या दुकान पे बैठे देखा है॥ बाहर का लगभग सारा काम ,जैसे दुकान का सामान लाना, आगन-बाड़ी मे खाना बनाने का सामान लाना ,कोयला लाना ,लकड़ी लाना ,वगेरा स्वेता के ही जिम्मे है, उसकी माँ का ज्यादातर समय आगन-बाड़ी के काम मे ही बीतता है॥
छुट्टियों मे जब भी मै घर जाती, स्वेता मुझसे मिलने जरुर आती है॥ और जब भी आती तो कभी पान तो कभी खट्टी-मिट्ठी गोलिया लेती आती, और पैसे दो तो इतने नखरे रहते है उसके, जब तक सामान वापस न कर दो तबतक पैसे नही लेती॥ एक बार मैंने उससे कहा - "स्वेता तेरा कान का तो बहुत सुदर लग रहा है " तो वो तुंरत बोली-"मैंने स्कुल के पास से पाँच रूपये मे लिया है,आपको अच्छा लग रहा है तो कल आपके लिए भी लेती आउंगी " उसकी यहीं सब बातें थी जो उसे ओरों से बहुत अलग करती॥ वो न तो बहुत ज्यादा बोलती है और न ही बहुत कम ,कभी उसे बच्चो की तरह बात या जिद्द करते भी नही सुना और न ही अपने हमउम्र बच्चो के साथ खेलते देखा है॥अगर उसकी छोटी बहने हमारे घर पे आकर कुछ बदमाशी करती तो वो ख़ुद ही उन्हें डांट कर घर भेज देती॥ ठण्ड के दिनों मे, मै, मेरी बहन और स्वेता छत पे बैठकर अक्सर आग तापा करते, और स्वेता न रहती तो हमारा आग जलाना बहुत मुश्किल होता, और फर्स्ट जनवरी को उसके बिना गोलगप्पा बनाने का तो हमे आईडिया ही नही आता॥ हमारे घर के हर छोटे-मोटे फंसन मे वो हमेशा रहती है, और कितना भी मना करो पर कहीं न कहीं से कोई न कोई काम ढूढ़ ही लेती॥अपने सब बहनों मे सबसे मटमैले कपड़े उसी के रहा करते.. उसे बस एक बार सरस्वती पूजा के दिन लड़कियों की तरह तैयार देखा था, बहुत प्यारी लग रही थी॥ उस दिन मैंने सोचा था, स्वेता वास्तव मे इतनी सावली नही होंगी जितनी दिखती है॥ दिनभर धुप मे काम करने की वजह से उसका रंग इतना सावला पड़ गया है॥
पिछली बार घर गई थी तो स्वेता का घर आना बहुत कम हो गया था॥ एक-दो बार कारण पूछा तो अपनी काम की लिस्ट सुनाने लगी..उसे सुनकर मै थक गई,,पता नही वो कभी थकी-सी कैसे नही दिखती॥ फिर मै बातों-ही-बातों मे जाने कैसे बोल गई,,की आज अगर अर्जुन चचा जिन्दा होते तो तुझे इतनी मुसीबत नही उठानी पड़ती॥पर इसका जो जबाब उसने मुझे इतनी मासूमियत और सच्चाई से दिया, उसे सुनकर मै हैरान , प्रभावित और पता नही क्या-क्या हो गई थी..
उसने कहा-'' नही दीदी, अच्छा हुआ जो मेरा बाप मर गया॥ वो जब जिन्दा था तो माँ को सब लोगों के सामने इतना मारता था, सारे पैसे दारू मे खर्च कर देता था.. एक बार तो मार-मार कर उसने माँ का हाथ तोड़ दिया, माँ रोती रही, और माँ को देखकर मै भी रोती रही॥ कितनी बार तो उसने माँ को इसलिए मारा क्यूंकि हमारा कोई भाई नही है॥ अब वो नही है तो हमे किसी का डर नही॥ जो मर्जी होती है खाते है, जहाँ मन होता है घूमते है ,स्कुल भी जाते है॥ माँ भी अब नही रोती॥ ''
उसकी इस बात को काफी देर तक मैं सोचकर समझने की कोशिश करती रही.. उस दिन मुझे समझ आया की स्वेता का वक्त से पहले समझदार होने की वजह उसके पिता की मौत नही, बल्कि उसके पिता के द्वारा उसकी माँ और उसपर होनेवाले अत्याचार थे.. उस दिन मुझे समझ आया क्यों स्वेता ने एक बार कहा था की वो कभी शादी नही करेगी और हमेशा अपनी माँ के साथ रहेगी॥
ऐसा नही है की स्वेता की जिन्दगी मे संघर्ष कम हो गए या आभाव नही है॥ पर अब उसके पास सुकून भरी नीद है जिसमे वो निर्भीक होकर सपने देख सकती है॥वो खुश है क्यूंकि अब उसकी माँ उसे डरी, लाचार, सहमी-सी नही दिखती॥ स्वेता आज अपनी माँ का वो सहारा बन गई है जो न तो उसका पति कभी बन पाया और न कभी कोई बेटा बन पाता...
हमारा घर पहाडी इलाके मे पड़ता है, सो रास्तों मे काफी उतार-चढाव है. पुल पार करके एक चढाव पे सामान लेकर चढ़ने मे पुरुषों की भी हालत पस्त हो जाती है..उसी चढाव पे हर दिन काफी भारी-भरकम सामान साईकिल पे लादे १४ वर्ष की दुबली-पतली सावली सी स्वेता को अक्सर सबों ने देखा होगा॥ कभी उसकी माँ उसे पीछे से धक्का देतीं हुई नज़र आती है कभी उसकी बहने॥
स्वेता अपनी छः बहनों मे तीसरे नम्बर पे है॥ अर्जुन चचा(स्वेता के पिता) की मृत्यु हुए पॉँच साल से ज्यादा हो गए होंगे और स्वेता को करीब से जानते हुए मुझे पॉँच साल से कम ही हुए होंगे ॥ अर्जुन चचा की मौत किसी दुर्घटना मे हो गई थी ॥ अपने मरने के बाद जायदाद के नाम पर अपनी बीबी और छः बच्चियों के लिए,एक छोटी-सी पान-गुमटी और किराये का एक कमरे वाला मकान छोड़ गए॥ उनकी मौत के बाद स्वेता की माँ के घरवालों के आलावा कोई सगा-सम्बन्धी नही था जो उनके लिए कुछ करता॥ उन्ही की मदद से कुछ साल पहले स्वेता की माँ ने बड़ी बेटी की शादी अपने से अच्छे घर मे करवा दी ॥ स्वीटी जो की दुसरे नम्बर पे है,उसे घर से बाहर निकलते कम ही देखा है॥ और स्वेता से छोटी बहनों को ज्यादातर खेलते या दुकान पे बैठे देखा है॥ बाहर का लगभग सारा काम ,जैसे दुकान का सामान लाना, आगन-बाड़ी मे खाना बनाने का सामान लाना ,कोयला लाना ,लकड़ी लाना ,वगेरा स्वेता के ही जिम्मे है, उसकी माँ का ज्यादातर समय आगन-बाड़ी के काम मे ही बीतता है॥
छुट्टियों मे जब भी मै घर जाती, स्वेता मुझसे मिलने जरुर आती है॥ और जब भी आती तो कभी पान तो कभी खट्टी-मिट्ठी गोलिया लेती आती, और पैसे दो तो इतने नखरे रहते है उसके, जब तक सामान वापस न कर दो तबतक पैसे नही लेती॥ एक बार मैंने उससे कहा - "स्वेता तेरा कान का तो बहुत सुदर लग रहा है " तो वो तुंरत बोली-"मैंने स्कुल के पास से पाँच रूपये मे लिया है,आपको अच्छा लग रहा है तो कल आपके लिए भी लेती आउंगी " उसकी यहीं सब बातें थी जो उसे ओरों से बहुत अलग करती॥ वो न तो बहुत ज्यादा बोलती है और न ही बहुत कम ,कभी उसे बच्चो की तरह बात या जिद्द करते भी नही सुना और न ही अपने हमउम्र बच्चो के साथ खेलते देखा है॥अगर उसकी छोटी बहने हमारे घर पे आकर कुछ बदमाशी करती तो वो ख़ुद ही उन्हें डांट कर घर भेज देती॥ ठण्ड के दिनों मे, मै, मेरी बहन और स्वेता छत पे बैठकर अक्सर आग तापा करते, और स्वेता न रहती तो हमारा आग जलाना बहुत मुश्किल होता, और फर्स्ट जनवरी को उसके बिना गोलगप्पा बनाने का तो हमे आईडिया ही नही आता॥ हमारे घर के हर छोटे-मोटे फंसन मे वो हमेशा रहती है, और कितना भी मना करो पर कहीं न कहीं से कोई न कोई काम ढूढ़ ही लेती॥अपने सब बहनों मे सबसे मटमैले कपड़े उसी के रहा करते.. उसे बस एक बार सरस्वती पूजा के दिन लड़कियों की तरह तैयार देखा था, बहुत प्यारी लग रही थी॥ उस दिन मैंने सोचा था, स्वेता वास्तव मे इतनी सावली नही होंगी जितनी दिखती है॥ दिनभर धुप मे काम करने की वजह से उसका रंग इतना सावला पड़ गया है॥
पिछली बार घर गई थी तो स्वेता का घर आना बहुत कम हो गया था॥ एक-दो बार कारण पूछा तो अपनी काम की लिस्ट सुनाने लगी..उसे सुनकर मै थक गई,,पता नही वो कभी थकी-सी कैसे नही दिखती॥ फिर मै बातों-ही-बातों मे जाने कैसे बोल गई,,की आज अगर अर्जुन चचा जिन्दा होते तो तुझे इतनी मुसीबत नही उठानी पड़ती॥पर इसका जो जबाब उसने मुझे इतनी मासूमियत और सच्चाई से दिया, उसे सुनकर मै हैरान , प्रभावित और पता नही क्या-क्या हो गई थी..
उसने कहा-'' नही दीदी, अच्छा हुआ जो मेरा बाप मर गया॥ वो जब जिन्दा था तो माँ को सब लोगों के सामने इतना मारता था, सारे पैसे दारू मे खर्च कर देता था.. एक बार तो मार-मार कर उसने माँ का हाथ तोड़ दिया, माँ रोती रही, और माँ को देखकर मै भी रोती रही॥ कितनी बार तो उसने माँ को इसलिए मारा क्यूंकि हमारा कोई भाई नही है॥ अब वो नही है तो हमे किसी का डर नही॥ जो मर्जी होती है खाते है, जहाँ मन होता है घूमते है ,स्कुल भी जाते है॥ माँ भी अब नही रोती॥ ''
उसकी इस बात को काफी देर तक मैं सोचकर समझने की कोशिश करती रही.. उस दिन मुझे समझ आया की स्वेता का वक्त से पहले समझदार होने की वजह उसके पिता की मौत नही, बल्कि उसके पिता के द्वारा उसकी माँ और उसपर होनेवाले अत्याचार थे.. उस दिन मुझे समझ आया क्यों स्वेता ने एक बार कहा था की वो कभी शादी नही करेगी और हमेशा अपनी माँ के साथ रहेगी॥
ऐसा नही है की स्वेता की जिन्दगी मे संघर्ष कम हो गए या आभाव नही है॥ पर अब उसके पास सुकून भरी नीद है जिसमे वो निर्भीक होकर सपने देख सकती है॥वो खुश है क्यूंकि अब उसकी माँ उसे डरी, लाचार, सहमी-सी नही दिखती॥ स्वेता आज अपनी माँ का वो सहारा बन गई है जो न तो उसका पति कभी बन पाया और न कभी कोई बेटा बन पाता...
Sunday, February 1, 2009
एक लम्हा...
जो वक्त मे घुलता-मिलता नही,,
वक्त को छोड़ भी आऊ,,
पर लम्हा साथ छोड़ता नही...
जगती रहती हूँ तो,,
आखों में चढ़ जाता है...
सोये में ख्याब बन जाता है...
भीड़ में उससे छिप भी जाऊ,,
पर अकेले में ख्यालात बन जाता है...
ओरों के नगमो में भूल भी जाऊ उसे,
पर मेरे कलम में दवात बन जाता है...
उजालो से ढक भी लूँ ख़ुद को,
पर अंधेरों में मेरे अन्दर समां जाता है...
जिन सवालों के जबाब नही मेरे पास,
वही सवाल बार-बार दुहराता है...
जिन रंगों से वास्ता नही मेरा,
उन्ही रंगों को बार-बार दिखलाता है...
जैसे ही दिल का दरिया जरा-सा सूखता है,,
फिर से भावनाओं का बाड़ ले आता है
जैसे ही नींद से ताल्लुक जरा-सा सुधरता है,,
फिर से रात की दहलीज़ पे ही बैठ जाता है...
एक लम्हा है ,,
जो वक्त मे घुलता-मिलता नही,,
वक्त को छोड़ भी आऊ,,
पर लम्हा साथ छोड़ता नही...
पर लम्हा साथ छोड़ता नही...
Thursday, January 22, 2009
जिन्दगी...
कभी लगता है ,जिन्दगी भँवर है,
जिसमे हम अनचाहे खिचे चले जा रहे हैं...
कभी लगता है, ये कँवर है,
जिसे रखना पाप है, इसलिए ढोए चले जा रहे हैं...
जिन्दगी के फूल कभी-कभी खुशबू भी फैलाते हैं,
पर ये फूल जल्दी ही मुरझा जाते हैं,
और सड़कर फ़िर लंबे समय तक अपनी बदबू छोड़ जाते है॥
जिन्दगी देनेवाले का काम भी बड़ा अजीब होता है,
इतने लोगों के लिए अलग-अलग राह बनाना,
कुछ लोगों को मिलाना,
और कुछ को मिलाकर अलग करवाना॥
कुछ पर अपने कृपा के मोंती बरसाना,
और कुछ की शिकायतें अनसुनी कर जाना॥
कुछ लोग भी अजीब होते हैं,
रिश्तें मर जाते हैं फ़िर भी उन्हें ढ़ोते हैं,
जब एहसास होता है तो बस रोतें हैं॥
समझदार लोंग ऐसे समय कहाँ खोते हैं,
पर कुछ लोंग इतने समझदार नही होते हैं,
ख़ुद गलतियाँ करते है और शिकायत ओरों से होते हैं,
जिन्दा तो रहते है पर जिन्दगी का मतलब खोते हैं॥
जिसमे हम अनचाहे खिचे चले जा रहे हैं...
कभी लगता है, ये कँवर है,
जिसे रखना पाप है, इसलिए ढोए चले जा रहे हैं...
जिन्दगी के फूल कभी-कभी खुशबू भी फैलाते हैं,
पर ये फूल जल्दी ही मुरझा जाते हैं,
और सड़कर फ़िर लंबे समय तक अपनी बदबू छोड़ जाते है॥
जिन्दगी देनेवाले का काम भी बड़ा अजीब होता है,
इतने लोगों के लिए अलग-अलग राह बनाना,
कुछ लोगों को मिलाना,
और कुछ को मिलाकर अलग करवाना॥
कुछ पर अपने कृपा के मोंती बरसाना,
और कुछ की शिकायतें अनसुनी कर जाना॥
कुछ लोग भी अजीब होते हैं,
रिश्तें मर जाते हैं फ़िर भी उन्हें ढ़ोते हैं,
जब एहसास होता है तो बस रोतें हैं॥
समझदार लोंग ऐसे समय कहाँ खोते हैं,
पर कुछ लोंग इतने समझदार नही होते हैं,
ख़ुद गलतियाँ करते है और शिकायत ओरों से होते हैं,
जिन्दा तो रहते है पर जिन्दगी का मतलब खोते हैं॥
Tuesday, January 20, 2009
सफ़ेद और काला...
सफ़ेद से ख्याबो को रचती रही...
काले की तौहीन करती रही...
एक दिन, सफ़ेद दिन की रौशनी मे कहीं खो गया...
अँधेरी रातों मे काला अपनी चादर ओढाकर मुझे सो गया...
फ़िर भी मन मे सफ़ेद के लिए प्यार कम न हुआ...
काला जानता था, पर इस बात का कभी उसे गम न हुआ...
सफ़ेद के लिए मै उडान भरती रही...
और काले को ख़ुद से दूर करने की कोशिश करती रही...
पर जब भी थक कर चुड़ हो जाती थी...
काले को ही अपने सबसे करीब पाती थी...
काले का ही आसरा मिलता रहा...
ये सिलसिला बहुत रोजो तक चलता रहा...
सफ़ेद की हसीं की याद तडपाती रही...
काले की झोली मे अपने आँसू गिराती रही...
सफ़ेद से लगाव था मेरा...
पर वो बेगाना मेरा साथ छोड़ गया...
काला भाता न था एक रत्ती...
और वही आज मेरा हमसफ़र हो गया...
एक दिन, सफ़ेद दिन की रौशनी मे कहीं खो गया...
अँधेरी रातों मे काला अपनी चादर ओढाकर मुझे सो गया...
फ़िर भी मन मे सफ़ेद के लिए प्यार कम न हुआ...
काला जानता था, पर इस बात का कभी उसे गम न हुआ...
सफ़ेद के लिए मै उडान भरती रही...
और काले को ख़ुद से दूर करने की कोशिश करती रही...
पर जब भी थक कर चुड़ हो जाती थी...
काले को ही अपने सबसे करीब पाती थी...
काले का ही आसरा मिलता रहा...
ये सिलसिला बहुत रोजो तक चलता रहा...
सफ़ेद की हसीं की याद तडपाती रही...
काले की झोली मे अपने आँसू गिराती रही...
सफ़ेद से लगाव था मेरा...
पर वो बेगाना मेरा साथ छोड़ गया...
काला भाता न था एक रत्ती...
और वही आज मेरा हमसफ़र हो गया...
Sunday, January 18, 2009
वो बचपन...
वो विक्रम-बैताल के लिए, स्कुल से दौड़कर घर आना,,
और किताबो के बीच नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव छुपाना॥
वो दोपहर में माँ के आँख लगते ही बाहर खेलने भाग जाना,,
और कहीं से कुत्ता का बच्चा पकड़कर घर ले आना और डांट खाना..
वो माँ के पीछे छिपकर भी जानी दुश्मन देखते जाना,,
और बिजली जाने पर, Mr.India देखने शर्मा अंकल के घर चले जाना॥
वो दुर्गा पूजा में नये कपडो के लिए एक महीने पहले से दुकान जाना,,
और गर्मी छुट्टी में नानीघर जाते वक्त ट्रेन की खिड़की से चिपक जाना॥
वो मम्मी का जबरदस्ती पकड़कर बालों में तेल लगाना,,
और पापा का ऑफिस से आते वक्त ढेर सारी चीजे लाना॥
वो लालटेन के सामने पढने की बजाय, लीड का बैलून बनाना,,
और स्कुल में मार न खाए इस वास्ते, हथेली पर पुटूस के पत्ते लगाना॥
वो सांपो और भूतों की कहानी सुन, तीन-बार गायत्री मन्त्र दोहराना,,
वो भाई से लड़ना और बहन को फुसलाना,वो स्कुल न जाने के दस बहाने बनाना॥
और भी कितना कुछ ,जो दिल के बहुत ही करीब है ,,
वो बचपन कितना हसीन है,वो बचपन कितना खुसनसीब है॥
और किताबो के बीच नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव छुपाना॥
वो दोपहर में माँ के आँख लगते ही बाहर खेलने भाग जाना,,
और कहीं से कुत्ता का बच्चा पकड़कर घर ले आना और डांट खाना..
वो माँ के पीछे छिपकर भी जानी दुश्मन देखते जाना,,
और बिजली जाने पर, Mr.India देखने शर्मा अंकल के घर चले जाना॥
वो दुर्गा पूजा में नये कपडो के लिए एक महीने पहले से दुकान जाना,,
और गर्मी छुट्टी में नानीघर जाते वक्त ट्रेन की खिड़की से चिपक जाना॥
वो मम्मी का जबरदस्ती पकड़कर बालों में तेल लगाना,,
और पापा का ऑफिस से आते वक्त ढेर सारी चीजे लाना॥
वो लालटेन के सामने पढने की बजाय, लीड का बैलून बनाना,,
और स्कुल में मार न खाए इस वास्ते, हथेली पर पुटूस के पत्ते लगाना॥
वो सांपो और भूतों की कहानी सुन, तीन-बार गायत्री मन्त्र दोहराना,,
वो भाई से लड़ना और बहन को फुसलाना,वो स्कुल न जाने के दस बहाने बनाना॥
और भी कितना कुछ ,जो दिल के बहुत ही करीब है ,,
वो बचपन कितना हसीन है,वो बचपन कितना खुसनसीब है॥
Saturday, January 17, 2009
पापी रात...
रात बदनसीब-सी दबे पाव चली आई है,,
अपने साथ पापो की गठरी उठा लायी है॥
जब सारा जग सो रहा है गहरी नींद मे,,
क्यों मुझको ही अपना दुखरा सुनाने आई है॥
जाकर इन यादों को कही दफना क्यों नही आती,,
अपने साथ मुझे भी निजाद क्यों नही दिलाती॥
जिनकी यादों को ये नासमझ ढोए जा रही है,,
उसने तो बस बेवफाई ही वफ़ा से निभाई है
जिस वक्त मौका आया हाथ बढ़ाने का,,
उसने जोर से एक और ठोकर लगाये है॥
अब दीवानी को कैसे समझायुं,ऐसे तू जी नही पायेगी,,
जितना इनको संजोयेगी,उतना ख़ुद को चोट पहुचायेगी॥
दिल के घाव को तो अब तक भरने न दिया,,
अब क्या रात जगाकर, आँखों से भी खून उतरवाएगी॥
अपने साथ पापो की गठरी उठा लायी है॥
जब सारा जग सो रहा है गहरी नींद मे,,
क्यों मुझको ही अपना दुखरा सुनाने आई है॥
जाकर इन यादों को कही दफना क्यों नही आती,,
अपने साथ मुझे भी निजाद क्यों नही दिलाती॥
जिनकी यादों को ये नासमझ ढोए जा रही है,,
उसने तो बस बेवफाई ही वफ़ा से निभाई है
जिस वक्त मौका आया हाथ बढ़ाने का,,
उसने जोर से एक और ठोकर लगाये है॥
अब दीवानी को कैसे समझायुं,ऐसे तू जी नही पायेगी,,
जितना इनको संजोयेगी,उतना ख़ुद को चोट पहुचायेगी॥
दिल के घाव को तो अब तक भरने न दिया,,
अब क्या रात जगाकर, आँखों से भी खून उतरवाएगी॥
ऐसा कोई...
वो जो सपनो को सजा दे...
वो जो ओरों को भुला दे...
वो जो जज्बातों को जुबान दे...
वो जो होठों को मुस्कान दे...
वो जो सफर को सुहाना बना दे...
वो जो बिन किए वादें निभा दे...
वो जो मेरा होना लाजमी है बता दे...
वो जो खुदा और किस्मत पे भरोशा दिला दे...
वो जो मेरे दिल के गुलशन को खिला दे...
वो जो सपनो को हकीक़त से मिला दे...
वो जो ओरों को भुला दे...
वो जो जज्बातों को जुबान दे...
वो जो होठों को मुस्कान दे...
वो जो सफर को सुहाना बना दे...
वो जो बिन किए वादें निभा दे...
वो जो मेरा होना लाजमी है बता दे...
वो जो खुदा और किस्मत पे भरोशा दिला दे...
वो जो मेरे दिल के गुलशन को खिला दे...
वो जो सपनो को हकीक़त से मिला दे...
ऐ मन ...
कब तक यूँही मुझे तरपायेगा ऐ 'मन',,,
मुझे परेशां करके तू क्या पायेगा ऐ 'मन'...
मै तो ऐसे भी दर्द की मारी हूँ,,,
मुझे और चोट पहुचाकर ,
तुझे क्या मिल जाएगा ऐ 'मन'...
उजाले तो रूठे है मुझसे,,,
अब क्या अंधेरों को भी मेरा दुश्मन बनाएगा....
ख्याब तो टूटे है मुझसे,,,
अब क्या ग़लतफ़हमी भी दूर करवाएगा...
कब तक यूँही मुझे तरपायेगा ऐ 'मन',,,
मुझे परेशां करके तू क्या पायेगा ऐ 'मन'...
मुस्कुराये हुए एक अरसा हुआ,,,
अब क्या आंसू भी गिरवायेगा...
मंजिल तो गुम हो चुके,,,
अब क्या रास्तों पे भी कांटे बिछ्वायेगा...
कब तक यूँही मुझे तरपायेगा ऐ 'मन',,,
मुझे परेशां करके तू क्या पायेगा ऐ 'मन'...
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