Friday, October 23, 2009

माँ..

माँ, तुझमे ही मेरी सारी दुनिया समायी,,,
बैचैन रातों मे, तेरी गोद मे ही नींद आई,,
अपने सारे सपने बेचकर,,
तू हमारे लिए बेसकिमती सपने ले आई,,
हमारी हर एक हसरत के लिए,
अपनी सारी चाहत भुलाई,,
अब मुम्किन तो नही की,,
तेरे सपने, चाहत, उम्र
कुछ भी लौटा दू,,
बस कोशिश करती हूँ,,
जो भी मेरे हाथो मे है,,
तेरी राहों मे बिछा दूँ...

2 comments: