Monday, March 29, 2010

चलों शादी कर लेती हूँ

चलों शादी कर लेती हूँ ,
थोडा मनोरंजन हो जाएगा ॥
चलों नौकरी कर लेती हूँ ,
थोडा समय कट जाएगा॥
पर शादी नहीं करनी थी,
इसलिए तो नौकरी पकड़ी थी॥
अब नौकरी से त्रस्त हुई तो ,
शादी का ख्याल आजमाने चली॥
जिन्दगी जैसे हवा हो गई हैं ,
कभी पूरब से बहती है, कभी पश्चिम से॥
न कोई स्थिरता है, न कोई स्वरुप ,
और ना ही कोई अस्तित्व ही ॥
किधर जाना है, कुछ पता नहीं ,
क्या पाना है, कुछ भाता भी तो नही॥
अन्दर एक निर्वात-सा हैं ,
बाहर सबकुछ धूमिल॥
बस चलते हैं, सब चलते हैं जो
किसी मुकाम पे पहुचना है सबको ,
पर पहुँचकर भी क्या हो जाएगा ,
मुकाम अंत मे एक राह ही बन जाएगा॥
लोग फिर भी राह तो तय कर ही लेते हैं ,
पर अपनी जिन्दगी तो ऐसे ही हैं॥
चलों शादी कर लेती हूँ..........................

9 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  2. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  3. O my god..amazing dear..it was a big surprize 4 me...i saw after long time but really you have wtritten very well..

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  4. A nicely written & plotted and better part is rhythm maintained till end.

    Gr8 !
    Happy Writing

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  5. Budhi hone se pahle saadi kar lo....

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  6. bahut khoob, kesi hai ap rashmi ji, muje pehchana?

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