Thursday, December 25, 2008

प्यार का फ़साना ...


कॉफी के कुछ प्यालो के लिए, 
न तुमने मुझे बुलाया होता,
न मै यु ही चली आती,
न तुमने बात बढाया होता...

बारिश के उन दिनों मे,
न तुमने अपना छाता छिपाया होता,
न मै तुम्हे अपनी छतरी मे बुलाती,
न तुमने पास आकर मुझे अन्दर तक भिंगाया होता...

गुलाब का वो फूल,
न तुमने मेरे किताब मे छुपाया होता,
न मै उसे देखकर मुस्कुराती,
न तुमने अपना हाले-दिल बताया होता...

पहारो की उन वादियों मे,
न तुमने मुझे अकेले बुलाया होता,
न मै तुम्हारे कांधे पे सर रखती,
न तुमने अपने प्यार का भरोशा दिलाया होता...

न तुमने मुझे प्यार करना सिखाया होता,
न मैंने तुम्हारा साथ चाहा होता,
इस तरह ता-जिन्दगी इंतज़ार क समुन्द्र मे,
छोड़ जाने से तो बेहतर था की ,
तुमने एहसासों का कोई रिश्ता ही न बनाया होता...

और बनाना ही था,
तो जाने से पहले,
अपने यादों के हर एक कतरे को,
दूर ले जाकर दफनाया होता...

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