कॉफी के कुछ प्यालो के लिए,
न तुमने मुझे बुलाया होता,
न तुमने मुझे बुलाया होता,
न मै यु ही चली आती,
न तुमने बात बढाया होता...
बारिश के उन दिनों मे,
न तुमने अपना छाता छिपाया होता,
न मै तुम्हे अपनी छतरी मे बुलाती,
न तुमने पास आकर मुझे अन्दर तक भिंगाया होता...
गुलाब का वो फूल,
न तुमने मेरे किताब मे छुपाया होता,
न मै उसे देखकर मुस्कुराती,
न तुमने अपना हाले-दिल बताया होता...
पहारो की उन वादियों मे,
न तुमने मुझे अकेले बुलाया होता,
न मै तुम्हारे कांधे पे सर रखती,
न तुमने अपने प्यार का भरोशा दिलाया होता...
न तुमने मुझे प्यार करना सिखाया होता,
न मैंने तुम्हारा साथ चाहा होता,
इस तरह ता-जिन्दगी इंतज़ार क समुन्द्र मे,
छोड़ जाने से तो बेहतर था की ,
तुमने एहसासों का कोई रिश्ता ही न बनाया होता...
और बनाना ही था,
तो जाने से पहले,
अपने यादों के हर एक कतरे को,
दूर ले जाकर दफनाया होता...
No comments:
Post a Comment