Tuesday, December 14, 2010

जिंदगी तू ऐसी क्यूँ हैं???

शुक्रिया जिन्दगी!!
एक और सबक सिखाने के लिए,
दिल पे गहरा, एक और घाव लगाने के लिए...
शिकवा करने का मतलब नही तुझसे,
तुने कभी सुनी हैं मेरी.. जो अब सुनेगी,,
कहेगी हमेशा की तरह की,
"जो होता हैं अच्छे के लिए होता  हैं"
जाने किसने तुझसे ये कहकर ,
तेरी मनमानियों को बढावा दिया हैं..
अगर कभी मिल जाये तो पुछुंगी ,
उन सभी हादसों के बारे मे ,
जिनसे आजतक न किसी  का  भला हुआ,,
 न ही आगे होने की कोई उम्मीद  हैं..

कभी सोचती हूँ, बहुत झगरू तुझसे,,
पर झगरू भी तो कैसे ??
जब भी कुछ बुरा-भला कहती हूँ ,
तू अपनी सूरत ऐसे मासूम-सा बना लेती हैं,
जैसे आगे से अब न  सताएगी..
और  झट से मैं तेरे भुलावे मे आकर,,
फिर से कोई नया ख्याब बुनने लग जाती हूँ..
तभी तेरे दिमाग मे हमेशा की तरह शैतानी छाती हैं..
दुष्ट, तू मेरे सपने को तोड़कर फिर से मुस्कुराती हैं..
तेरा ये सिलसिला, अब और मुझसे बर्दास्त न होगा..
सुधर जा...............मैं बोल रही हूँ......
नहीं तो....................नहीं तो......
नहीं तो.....क्या  कर ही सकती हूँ मैं ????
तू तो किसी के हिसाब से चलने से रही,,
हमें ही तेरे हिसाब से चलना होता हैं..
पर मैं भी तुझसे  हार नहीं मानूंगी,,
किसी दिन कोई सपना पूरा होने की आश लेकर,,
हर रोज़ एक नया ख्याब सजायुंगी....

Monday, March 29, 2010

चलों शादी कर लेती हूँ

चलों शादी कर लेती हूँ ,
थोडा मनोरंजन हो जाएगा ॥
चलों नौकरी कर लेती हूँ ,
थोडा समय कट जाएगा॥
पर शादी नहीं करनी थी,
इसलिए तो नौकरी पकड़ी थी॥
अब नौकरी से त्रस्त हुई तो ,
शादी का ख्याल आजमाने चली॥
जिन्दगी जैसे हवा हो गई हैं ,
कभी पूरब से बहती है, कभी पश्चिम से॥
न कोई स्थिरता है, न कोई स्वरुप ,
और ना ही कोई अस्तित्व ही ॥
किधर जाना है, कुछ पता नहीं ,
क्या पाना है, कुछ भाता भी तो नही॥
अन्दर एक निर्वात-सा हैं ,
बाहर सबकुछ धूमिल॥
बस चलते हैं, सब चलते हैं जो
किसी मुकाम पे पहुचना है सबको ,
पर पहुँचकर भी क्या हो जाएगा ,
मुकाम अंत मे एक राह ही बन जाएगा॥
लोग फिर भी राह तो तय कर ही लेते हैं ,
पर अपनी जिन्दगी तो ऐसे ही हैं॥
चलों शादी कर लेती हूँ..........................