कहानी जैसा आजतक कुछ लिखा नही, इसलिए उम्मीद कम है की विषय के साथ पूर्ण न्याय कर पाऊँगी॥ वैसे आज भी, पहली बार जो लिखने का प्रयास कर रही हूँ वो कोई कहानी नही बस मेरा आँखों देखा यथार्थ है..कोशिश है जो मैंने देखा है आपको भी उसी रूप मे दिखा सकू॥
हमारा घर पहाडी इलाके मे पड़ता है, सो रास्तों मे काफी उतार-चढाव है. पुल पार करके एक चढाव पे सामान लेकर चढ़ने मे पुरुषों की भी हालत पस्त हो जाती है..उसी चढाव पे हर दिन काफी भारी-भरकम सामान साईकिल पे लादे १४ वर्ष की दुबली-पतली सावली सी स्वेता को अक्सर सबों ने देखा होगा॥ कभी उसकी माँ उसे पीछे से धक्का देतीं हुई नज़र आती है कभी उसकी बहने॥
स्वेता अपनी छः बहनों मे तीसरे नम्बर पे है॥ अर्जुन चचा(स्वेता के पिता) की मृत्यु हुए पॉँच साल से ज्यादा हो गए होंगे और स्वेता को करीब से जानते हुए मुझे पॉँच साल से कम ही हुए होंगे ॥ अर्जुन चचा की मौत किसी दुर्घटना मे हो गई थी ॥ अपने मरने के बाद जायदाद के नाम पर अपनी बीबी और छः बच्चियों के लिए,एक छोटी-सी पान-गुमटी और किराये का एक कमरे वाला मकान छोड़ गए॥ उनकी मौत के बाद स्वेता की माँ के घरवालों के आलावा कोई सगा-सम्बन्धी नही था जो उनके लिए कुछ करता॥ उन्ही की मदद से कुछ साल पहले स्वेता की माँ ने बड़ी बेटी की शादी अपने से अच्छे घर मे करवा दी ॥ स्वीटी जो की दुसरे नम्बर पे है,उसे घर से बाहर निकलते कम ही देखा है॥ और स्वेता से छोटी बहनों को ज्यादातर खेलते या दुकान पे बैठे देखा है॥ बाहर का लगभग सारा काम ,जैसे दुकान का सामान लाना, आगन-बाड़ी मे खाना बनाने का सामान लाना ,कोयला लाना ,लकड़ी लाना ,वगेरा स्वेता के ही जिम्मे है, उसकी माँ का ज्यादातर समय आगन-बाड़ी के काम मे ही बीतता है॥
छुट्टियों मे जब भी मै घर जाती, स्वेता मुझसे मिलने जरुर आती है॥ और जब भी आती तो कभी पान तो कभी खट्टी-मिट्ठी गोलिया लेती आती, और पैसे दो तो इतने नखरे रहते है उसके, जब तक सामान वापस न कर दो तबतक पैसे नही लेती॥ एक बार मैंने उससे कहा - "स्वेता तेरा कान का तो बहुत सुदर लग रहा है " तो वो तुंरत बोली-"मैंने स्कुल के पास से पाँच रूपये मे लिया है,आपको अच्छा लग रहा है तो कल आपके लिए भी लेती आउंगी " उसकी यहीं सब बातें थी जो उसे ओरों से बहुत अलग करती॥ वो न तो बहुत ज्यादा बोलती है और न ही बहुत कम ,कभी उसे बच्चो की तरह बात या जिद्द करते भी नही सुना और न ही अपने हमउम्र बच्चो के साथ खेलते देखा है॥अगर उसकी छोटी बहने हमारे घर पे आकर कुछ बदमाशी करती तो वो ख़ुद ही उन्हें डांट कर घर भेज देती॥ ठण्ड के दिनों मे, मै, मेरी बहन और स्वेता छत पे बैठकर अक्सर आग तापा करते, और स्वेता न रहती तो हमारा आग जलाना बहुत मुश्किल होता, और फर्स्ट जनवरी को उसके बिना गोलगप्पा बनाने का तो हमे आईडिया ही नही आता॥ हमारे घर के हर छोटे-मोटे फंसन मे वो हमेशा रहती है, और कितना भी मना करो पर कहीं न कहीं से कोई न कोई काम ढूढ़ ही लेती॥अपने सब बहनों मे सबसे मटमैले कपड़े उसी के रहा करते.. उसे बस एक बार सरस्वती पूजा के दिन लड़कियों की तरह तैयार देखा था, बहुत प्यारी लग रही थी॥ उस दिन मैंने सोचा था, स्वेता वास्तव मे इतनी सावली नही होंगी जितनी दिखती है॥ दिनभर धुप मे काम करने की वजह से उसका रंग इतना सावला पड़ गया है॥
पिछली बार घर गई थी तो स्वेता का घर आना बहुत कम हो गया था॥ एक-दो बार कारण पूछा तो अपनी काम की लिस्ट सुनाने लगी..उसे सुनकर मै थक गई,,पता नही वो कभी थकी-सी कैसे नही दिखती॥ फिर मै बातों-ही-बातों मे जाने कैसे बोल गई,,की आज अगर अर्जुन चचा जिन्दा होते तो तुझे इतनी मुसीबत नही उठानी पड़ती॥पर इसका जो जबाब उसने मुझे इतनी मासूमियत और सच्चाई से दिया, उसे सुनकर मै हैरान , प्रभावित और पता नही क्या-क्या हो गई थी..
उसने कहा-'' नही दीदी, अच्छा हुआ जो मेरा बाप मर गया॥ वो जब जिन्दा था तो माँ को सब लोगों के सामने इतना मारता था, सारे पैसे दारू मे खर्च कर देता था.. एक बार तो मार-मार कर उसने माँ का हाथ तोड़ दिया, माँ रोती रही, और माँ को देखकर मै भी रोती रही॥ कितनी बार तो उसने माँ को इसलिए मारा क्यूंकि हमारा कोई भाई नही है॥ अब वो नही है तो हमे किसी का डर नही॥ जो मर्जी होती है खाते है, जहाँ मन होता है घूमते है ,स्कुल भी जाते है॥ माँ भी अब नही रोती॥ ''
उसकी इस बात को काफी देर तक मैं सोचकर समझने की कोशिश करती रही.. उस दिन मुझे समझ आया की स्वेता का वक्त से पहले समझदार होने की वजह उसके पिता की मौत नही, बल्कि उसके पिता के द्वारा उसकी माँ और उसपर होनेवाले अत्याचार थे.. उस दिन मुझे समझ आया क्यों स्वेता ने एक बार कहा था की वो कभी शादी नही करेगी और हमेशा अपनी माँ के साथ रहेगी॥
ऐसा नही है की स्वेता की जिन्दगी मे संघर्ष कम हो गए या आभाव नही है॥ पर अब उसके पास सुकून भरी नीद है जिसमे वो निर्भीक होकर सपने देख सकती है॥वो खुश है क्यूंकि अब उसकी माँ उसे डरी, लाचार, सहमी-सी नही दिखती॥ स्वेता आज अपनी माँ का वो सहारा बन गई है जो न तो उसका पति कभी बन पाया और न कभी कोई बेटा बन पाता...
हमारा घर पहाडी इलाके मे पड़ता है, सो रास्तों मे काफी उतार-चढाव है. पुल पार करके एक चढाव पे सामान लेकर चढ़ने मे पुरुषों की भी हालत पस्त हो जाती है..उसी चढाव पे हर दिन काफी भारी-भरकम सामान साईकिल पे लादे १४ वर्ष की दुबली-पतली सावली सी स्वेता को अक्सर सबों ने देखा होगा॥ कभी उसकी माँ उसे पीछे से धक्का देतीं हुई नज़र आती है कभी उसकी बहने॥
स्वेता अपनी छः बहनों मे तीसरे नम्बर पे है॥ अर्जुन चचा(स्वेता के पिता) की मृत्यु हुए पॉँच साल से ज्यादा हो गए होंगे और स्वेता को करीब से जानते हुए मुझे पॉँच साल से कम ही हुए होंगे ॥ अर्जुन चचा की मौत किसी दुर्घटना मे हो गई थी ॥ अपने मरने के बाद जायदाद के नाम पर अपनी बीबी और छः बच्चियों के लिए,एक छोटी-सी पान-गुमटी और किराये का एक कमरे वाला मकान छोड़ गए॥ उनकी मौत के बाद स्वेता की माँ के घरवालों के आलावा कोई सगा-सम्बन्धी नही था जो उनके लिए कुछ करता॥ उन्ही की मदद से कुछ साल पहले स्वेता की माँ ने बड़ी बेटी की शादी अपने से अच्छे घर मे करवा दी ॥ स्वीटी जो की दुसरे नम्बर पे है,उसे घर से बाहर निकलते कम ही देखा है॥ और स्वेता से छोटी बहनों को ज्यादातर खेलते या दुकान पे बैठे देखा है॥ बाहर का लगभग सारा काम ,जैसे दुकान का सामान लाना, आगन-बाड़ी मे खाना बनाने का सामान लाना ,कोयला लाना ,लकड़ी लाना ,वगेरा स्वेता के ही जिम्मे है, उसकी माँ का ज्यादातर समय आगन-बाड़ी के काम मे ही बीतता है॥
छुट्टियों मे जब भी मै घर जाती, स्वेता मुझसे मिलने जरुर आती है॥ और जब भी आती तो कभी पान तो कभी खट्टी-मिट्ठी गोलिया लेती आती, और पैसे दो तो इतने नखरे रहते है उसके, जब तक सामान वापस न कर दो तबतक पैसे नही लेती॥ एक बार मैंने उससे कहा - "स्वेता तेरा कान का तो बहुत सुदर लग रहा है " तो वो तुंरत बोली-"मैंने स्कुल के पास से पाँच रूपये मे लिया है,आपको अच्छा लग रहा है तो कल आपके लिए भी लेती आउंगी " उसकी यहीं सब बातें थी जो उसे ओरों से बहुत अलग करती॥ वो न तो बहुत ज्यादा बोलती है और न ही बहुत कम ,कभी उसे बच्चो की तरह बात या जिद्द करते भी नही सुना और न ही अपने हमउम्र बच्चो के साथ खेलते देखा है॥अगर उसकी छोटी बहने हमारे घर पे आकर कुछ बदमाशी करती तो वो ख़ुद ही उन्हें डांट कर घर भेज देती॥ ठण्ड के दिनों मे, मै, मेरी बहन और स्वेता छत पे बैठकर अक्सर आग तापा करते, और स्वेता न रहती तो हमारा आग जलाना बहुत मुश्किल होता, और फर्स्ट जनवरी को उसके बिना गोलगप्पा बनाने का तो हमे आईडिया ही नही आता॥ हमारे घर के हर छोटे-मोटे फंसन मे वो हमेशा रहती है, और कितना भी मना करो पर कहीं न कहीं से कोई न कोई काम ढूढ़ ही लेती॥अपने सब बहनों मे सबसे मटमैले कपड़े उसी के रहा करते.. उसे बस एक बार सरस्वती पूजा के दिन लड़कियों की तरह तैयार देखा था, बहुत प्यारी लग रही थी॥ उस दिन मैंने सोचा था, स्वेता वास्तव मे इतनी सावली नही होंगी जितनी दिखती है॥ दिनभर धुप मे काम करने की वजह से उसका रंग इतना सावला पड़ गया है॥
पिछली बार घर गई थी तो स्वेता का घर आना बहुत कम हो गया था॥ एक-दो बार कारण पूछा तो अपनी काम की लिस्ट सुनाने लगी..उसे सुनकर मै थक गई,,पता नही वो कभी थकी-सी कैसे नही दिखती॥ फिर मै बातों-ही-बातों मे जाने कैसे बोल गई,,की आज अगर अर्जुन चचा जिन्दा होते तो तुझे इतनी मुसीबत नही उठानी पड़ती॥पर इसका जो जबाब उसने मुझे इतनी मासूमियत और सच्चाई से दिया, उसे सुनकर मै हैरान , प्रभावित और पता नही क्या-क्या हो गई थी..
उसने कहा-'' नही दीदी, अच्छा हुआ जो मेरा बाप मर गया॥ वो जब जिन्दा था तो माँ को सब लोगों के सामने इतना मारता था, सारे पैसे दारू मे खर्च कर देता था.. एक बार तो मार-मार कर उसने माँ का हाथ तोड़ दिया, माँ रोती रही, और माँ को देखकर मै भी रोती रही॥ कितनी बार तो उसने माँ को इसलिए मारा क्यूंकि हमारा कोई भाई नही है॥ अब वो नही है तो हमे किसी का डर नही॥ जो मर्जी होती है खाते है, जहाँ मन होता है घूमते है ,स्कुल भी जाते है॥ माँ भी अब नही रोती॥ ''
उसकी इस बात को काफी देर तक मैं सोचकर समझने की कोशिश करती रही.. उस दिन मुझे समझ आया की स्वेता का वक्त से पहले समझदार होने की वजह उसके पिता की मौत नही, बल्कि उसके पिता के द्वारा उसकी माँ और उसपर होनेवाले अत्याचार थे.. उस दिन मुझे समझ आया क्यों स्वेता ने एक बार कहा था की वो कभी शादी नही करेगी और हमेशा अपनी माँ के साथ रहेगी॥
ऐसा नही है की स्वेता की जिन्दगी मे संघर्ष कम हो गए या आभाव नही है॥ पर अब उसके पास सुकून भरी नीद है जिसमे वो निर्भीक होकर सपने देख सकती है॥वो खुश है क्यूंकि अब उसकी माँ उसे डरी, लाचार, सहमी-सी नही दिखती॥ स्वेता आज अपनी माँ का वो सहारा बन गई है जो न तो उसका पति कभी बन पाया और न कभी कोई बेटा बन पाता...
रश्मि किरण जी
ReplyDeleteआपने जो कहानी नुमा संस्मरण लिखा है, बहुत ही भावनात्मक बन गया है. नारी प्रताड़ना , गरीबी, स्वाभिमान, मिलनसारिता और अपनोसे कमजोरों का स्नेह जैसे अनेक गुणों से लबरेज है ये रचना , आप आगे जरूर मुकम्मल फार्मेट में लिख पाएंगी
बधाई.
- विजय
इसे एक अच्छी शुरूआत कह सकते हैं। आपने जो कुछ लिखा है, वह किसी कहानी से कम नहीं है। अभ्यास जारी रखिए।
ReplyDeleteविजयजी और रविजी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteRashmi ji ,
ReplyDeleteBahut marmik kahani sunai aapne aur aapne bahut hi achchha likha hai. kahani ke satha pura nyay kiya hai aapne....Shweta ko shaya pata bhi nahi hoga ki kitane log uski khushi ke liye duaa kar rahe hai...
hey rushmi,
ReplyDeletei won't go formal bt this ws reely a nice story.... i jst gt into my old dayz...probably my hindi classes... expectin gud stories in future too!!
all d bst
this is very heart touching and sad incident, which, I pray god, not to happen with anybody. Shewta is very diligent lady with lots of goodness and innocence. I wish you always remain her good friend and mentor.
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